Best motivational story for youth in Hindi

दोस्तों, कहानियां हमारे जीवन का बहुत ही अहम हिस्सा रही है. हमारे परेंट्स को या हमारे शिक्षकों को हमें कुछ भी नया सिखाना होता था तब कहानी एक बेहतरीन जरिया हुआ करता था इस काम के लिए बल्कि मैं तो कहूंगा अब भी बेहतरीन जरिया है जीवन के पाठ सीखने के लिए. अगर आप ध्यान देंगे तो आपको पता चलेगा कि हम फिल्मों के जरिए रेडियो चैनल के जरिए नाटक या ड्रामा देख कर या फिर हर दिन आने वाले डेलीसोप के जरिए नई नई कहानियां तो सुनते हैं. तो इस तरह कहानियां हर उम्र के लोगों के लिए उतनी ही फायदेमंद और काम की होती है जितनी बच्चों के लिए. आज की इस कहानी में हम युवाओं के लिए एक बेहतरीन प्रेरक कहानी या फिर ऐसे कह लीजिए कि एक motivational youth story in Hindi आपको बताएंगे.

युवाओं के लिए प्रेरक कहानियां

ये कहानी 100-200 साल पहले की है. एक बड़ा ही सुंदर गांव था, उस गांव का सरपंच बहुत समझदार और भगवान में काफी विश्वास रखने वाला था. वह गांव में बढ़िया तनी खाली जमीन पर भगवान का एक बहुत बड़ा मंदिर बनाना चाहता था, जिसके लिए उसने सारी तैयारियां कर ली थी और गांव के सबसे बेहतरीन मूर्तिकार को उस मंदिर के लिए भगवान की मूर्ति बनाने का काम भी सौंप चुका था.

एक दिन उसने सोचा की मूर्ति बनाने के लिए आर्डर देकर एक महीना बीत गया, चलो जा कर देखता हूं की मूर्ति बनाने का काम कहां तक पहुंचा हैं? यह सोचकर वह मूर्तिकार जहां रहता था उस तरफ चल पड़ा.

 सरपंच जब मूर्तिकार के पास पहुंचा तो उसने देखा कि मूर्तिकार एक मूर्ति पर काम कर रहा था जबकि उसके पास ही एक और मूर्ति पूरी तरह बनकर तैयार रखी थी. सरपंच ने जब ध्यान से देखा तो उसे पता चला कि यह दोनों मूर्तियां तो बिल्कुल हूबहू दिख रही थी. उसे लगा कि अरे यह मूर्तिकार क्या कर रहा है, मैने तो सिर्फ एक मूर्ति बनाने के लिए इसे कहा था यह दो क्यों बना रहा हैं?

सरपंच से रहा नहीं गया वह मूर्तिकार के पास गया और उसे पूछने लगा ,"अरे भाई जब मैंने एक ही मूर्ति का आर्डर दिया हैं जो तुम दो क्यों बना रहे हो?" "क्या तुम किसी और के लिए भी सेम टू सेम दूसरी मूर्ति बना रहे हो तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए दो मूर्तियां एक समान नहीं होनी चाहिए." सरपंच ने मूर्तिकार से कहा. "ऐसा नहीं हैं साहब, ना मैं आपके लिए दो मूर्तियां बना रहा हूं ना ही किसी और के लिए सेम मूर्ति बना रहा हूं बल्कि पहली वाली मूर्ति मुझसे सही नहीं बनी इसलिए मैं आपके लिए ही दूसरी मूर्ति बना रहा हूं जो परफैक्ट हो." मूर्तिकार दें सरपंच को समझाते हुए कहा.

सरपंच ने मूर्तिकार की बातें सुनी फिर वह साइड में रखी उस मूर्ति का निरीक्षण करने लगा जिसे मूर्तिकार कह रहा था कि ठीक से नहीं बनी है. बहुत समय तक ध्यान से देखने के बाद भी सरपंच को उस मूर्ति में ऐसी कोई कमी नजर नहीं आई जिससे मूर्ति को वह खराब के सके !

अब सरपंच की जिज्ञासा और बढ़ गई उसने मूर्तिकार से फिर पूछा,"तुम तो कह रहे हो कि यह मूर्ति ठीक से नहीं बनी हैं पर मुझे तो इसमें कोई खामी नजर नहीं आ रही."
तब मूर्तिकार ने सरपंच को मूर्ति के पास ले जाकर मूर्ति पर नाक के और इशारा करते हुए उसमें एक छोटी सी बिंदु की खामी को दिखाते हुए कहा कि यह देखिए यह है प्रॉब्लम.

सरपंच को यह सब देख कर लगा कि यह मूर्तिकार थोड़ा सा पागल है, तभी तो इतनी छोटी सी गलती जो किसी के नजर में भी नहीं आ सकती उसके लिए इतने दिनों की मेहनत को बर्बाद करके दोबारा उसी पर मेहनत कर रहा है ! सरपंच ने मूर्तिकार को समझाने की कोशिश की. सरपंच ने कहा,"देखो भाई तुम यह अच्छी तरह जानते हो कि मंदिर में जहां पर इस मूर्ति की स्थापना की जाएगी उसके ज्यादा करीब किसी को जाने दिया नहीं जाएगा. और अगर कोई इतना करीब ही नहीं जाएगा तो ये को ना के बराबर खामी है उसे कौन देखेगा?" मूर्तिकार ने जवाब देते हुए कहा कि," साहब, आप सही कह रहे हैं इसे कोई और नहीं देख पाएगा मगर मैं इसे देख पा रहा हूं और मेरा भगवान इसे देख पा रहा है, इसलिए मैं इसे अनदेखा नहीं कर सकता और ऐसा काम करने से मुझे संतुष्टि भी नहीं मिलती है. और आप ही बताइए क्या ऐसे काम पर में गर्व कर पाऊंगा?"

मूर्तिकार के ऐसे विचार सुनकर सरपंच भी उससे इंप्रेस हो गया. सरपंच ने मूर्तिकार को शाबाशी दी और कहा कि," तुमने मुझे आज जो सिखाया है उसे मैं अपने जीवन में हमेशा अप्लाय करूंगा और जो भी काम करूंगा पूरी निष्ठा से करूंगा ताकि अपने किए गए काम पर मैं हमेशा गर्व कर सकू."

Moral of the story : कहानी का सारांश

दोस्तों हम भी अपनी जिंदगी में सैकड़ों हजारों तरह के अलग-अलग काम करते हैं मगर क्या हम उनमें से किसी भी काम को अपना बेस्ट काम कह सकते हैं जिस पर हम पूरी जिंदगी गर्व कर सकें? किसी ने कहा है की अगर आप सफाई का काम भी करते हैं तो ऐसे करो कि लोग ही नहीं भगवान भी आपको याद करें कि एक सफाई वाला था जो यहां सफाई किया करता था! कहने का मतलब है कि हम चाहे जो काम करें हम दूसरों को दिखाने के लिए ना करके उसको इतनी ईमानदारी से करें कि कोई और उस काम को हमारे जितना बेहतर कभी ना कर पाए और हमेशा अपने द्वारा किए गए काम पर गर्व कर सके.

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