हम सब ने जीवन में कई कहानियां सुनी,पढ़ी या देखी होगी, इनमें से कुछ एक कहानियां ऐसी होती है जो हमारे मन पर गहरी छाप छोड़ जाती है। आज मैं आपके समक्ष ऐसी ही एक Motivational Hindi Story लाया हूं जो आपको motivate तो करेगी ही साथ ही आपको अपने आप को इंप्रूव करनेका रास्ता भी बताएगी बस आपको इस कहानी को पूरा पढ़ना होगा!!


4 बेलगाम घोड़े : मोटिवेशनल कहानी | Motivational Hindi Story


कई सालों पहले किसी एक राज्य में एक राजा राज करता था। इस राजा को घोड़े पालने का बहुत शौक था। इस राजा के पास वैसे तो कई सारे घोड़े थे लेकिन इसके पास चार ऐसे जंगली घोड़े थे


Motivational Story in Hindi

जो इस राजा को काफी पसंद थे।


राजा ने इन घोड़ों को ट्रेन करने के लिए कई ट्रेनरों को बुलाया, मगर कोई भी इन घोड़ों को अच्छे से ट्रेन नहीं कर पाया। जब भी कोई इन पर बैठने की कोशिश करता तो यह उसे तुरंत अपनी पीठ से फेंक देते या उसे लात मार देते।   राजा को घोड़े प्यारे बहुत थे इसलिए ट्रेनरों को सख्त वार्निंग दी जाती थी कि इन पर जोर जबरदस्ती ना की जाए यानी कि इन्हें मारा पीटा ना जाए।


 कई महीने निकल गए मगर कोई भी ट्रेनर घोड़ों को अच्छी तरह से ट्रेन करने में सक्षम नहीं हो पाया। तब राजा ने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो भी व्यक्ति इन घोड़ों को अच्छे से ट्रेन कर देगा उसे बहुत बड़ा इनाम दिया जाएगा।


 कुछ दिनों बाद एक युवा ट्रेनर राजा के पास आया। राजा ने अपनी शर्त की घोड़ों की ट्रेनिंग बिना मार पिटाई होनी चाइए ऐसा उस युवा को बताई। युवा ने राजा की शर्त मान ली और अपनी तरफ से भी राजा के सामने दो शर्ते रख दी। युवा ट्रेनर बोला मैं आपकी हर शर्त मानने के लिए तैयार हूं मगर मेरी भी 2 शर्ते हैं जो आप मानो तभी मैं आपके घोड़ों को ट्रेन कर पाऊंगा!


 राजा ने कहा - पहले शर्तें तो बताओ। ट्रेनर बोला - पहली शर्त है कि मुझे इन घोड़ों को ट्रेन करने के लिए कुछ महीने या पूरा साल भी लग सकता है, उतना वक्त दिया जाए। और दूसरी शर्त यह है कि इन घोड़ों के खाने,पीने रहने का बंदोबस्त पूरा मुझ पर छोड़ दिया जाए।


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 राजा के पास कोई और विकल्प था नहीं। कोई भी ट्रेनर आज तक घोड़ों को टन करने में सफल नहीं हो पाया था और अब तो नए ट्रेनर्स भी आने बंद हो गए थे।  राजाने युवा ट्रेनर की सारी शर्तें मान ली और घोड़े उसे सौंप दिए।


 युवा ट्रेनर अगले दिन से ही एक बड़े से बाड़े में इन घोड़ों लेकर गया और वहां सब को खुला छोड़ दिया। ट्रेनर बाड़े के किनारे किनारे पर दौड़ने लगा! फिर दौड़ते दौड़ते थकने के बाद यह युवा ट्रेनर वही बाड़े में लेट गया। वहां से उठने के बाद उसने खुद ही घोड़ों को चारा खिलाया और पानी पिलाया। इन सब प्रक्रिया के दौरान उसने घोड़ों को नहीं बांधा था।


 अगले दिन भी ट्रेनर ने वही सारा काम दोहराया जो उसने पहले दिन किया था। यह काम उसका नित्यक्रम बन गया। वह घोड़ों को बाड़े में खुला छोड़ देता, उन्हें घास चारा खिलाता और बाड़े के किनारे किनारे दौड़ता रहता। धीरे धीरे चारों घोड़े भी उस ट्रेनर के पीछे पीछे दौड़ना शुरू कर दिए!


 घोड़ों को लगने लगा कि  ट्रेनर उनका दोस्त है और उनसे प्यार करता है।  सारे घोड़े ट्रेनर के साथ बहुत ही सहज महसूस करने लगे।


कुछ महीने बीतने के बाद 1 दिन राजा अपने घोड़ों की खबर लेने के लिए और यह देखने के लिए कि ट्रेनिंग कैसी चल रही है बाड़े में आया। राजा ये देख कर खुश हो गया कि सारे घोड़े ट्रेनर के पीछे पीछे दौड़ रहे थे। राजा को अब यकीन हो गया कि यह ट्रेनर ही उसके घोड़ों को ट्रेन कर सकता है। राजा खुशी खुशी वहां से चला गया।


देखते ही देखते 1 साल बीत गया तब जाकर युवा ट्रेनर ने राजा को संदेशा भिजवाया की घोड़े पूरी तरह ट्रेंइंड हो चुके है सो राजा एक बार आकर देख ले।


राजा की हाजरी में युवा ट्रेनर ने एक के बाद एक सभी घोड़ों की सवारी की और उन्हें मनचाही जगह पर ले जा कर दिखाया। राजा यह देखकर बहुत खुश हो गया।


राजा ने युवा ट्रेनर से पूछा कि मुझे तुम बताओ कि तुमने यह कैसा किया?  युवा ट्रेनर ने राजा को सारी बात समझाते हुए कहा - मैंने सबसे पहले इन घोड़ों को अपनापन महसूस कराया इनके साथ रहकर। मैंने इनको आजाद करके यह जताया कि मैं इनका दोस्त हूं और में इनसे प्यार करता हूं। फिर मैंने इनको खाना और पानी देकर उनके और करीब जाने की कोशिश की और इनके साथ खेल कर इन्हें सिखाने की कोशिश की  इस तरह धीरे-धीरे यह मुझे अपने करीब आने देने लगे, अपनी पीठ पर बैठने देते और फिर एक दिन ऐसा भी आया जब मुझे यह पीठ पर बिठाकर दौड़ने लगे!


 राजा ने युवा ट्रेनर की समझदारी की प्रशंसा की, उसे वादे के अनुसार लाखों सोना मुहावरे दी और साथ में हमेशा के लिए इन चारों घोड़ों की देखभाल करने की नौकरी भी दी।


दोस्तों कहानी तो बहुत ही मजेदार और रोचक है ही मगर इसका जो सारांश है बहुत ही गहरा है अगर मनुष्य के जीवन के साथ इन चार घोड़ों की तुलना की जाए तो यह चार घोड़े होंगे चिंता, गुस्सा घमंड और लालच और मनुष्य की बुद्धि को हम युवा ट्रेनर की तरह देख सकते हैं जिस तरह से युवा ट्रेन में समय लेकर और समझदारी से धीरे धीरे चारों बदमाश घोड़ों पर काबू पाया उसी तरह कोई भी मनुष्य अपने जीवन के सबसे बदमाश घोड़े यानी कि चिंता क्रोध घमंड और लालच पर काबू पा सकता है।


पहला अप्रशिक्षित घोड़ा जो की चिंता है। हमारी बुद्धि को यह समझाना होगा कि चिंता बुरी होती है और चिंतन फायदेमंद होता है। चिंता किसी भी समस्या का हल नहीं होता,हा चिंतन से हमें नए रास्ते जरूर दिखाई देते हैं।


दूसरा  उद्वड घोड़ा है क्रोध। दोस्तों कभी कभी जीवन में क्रोध करना आवश्यक होता है। कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां आती है जब आपका हक कोई मार रहा हो या बेवजह आप पर जुल्म कर रहा हो तब क्रोध करना कोई बुरी बात नहीं है। मगर क्रोध कब करना है? कैसे करना है?कितना करना है? किस पर करना है? इन सब की लगाम अपने हाथों में रखना बहुत जरूरी है।


तीसरा उदवंत घोड़ा है लालच। लालच ज्ञान पाने की हो तो अच्छी है। लालच अज्ञानता की हो तो बुरी है। लालच धन मेहनत से प्राप्त करने की हो तो अच्छी। लालच बिना मेहनत के गलत तरीके से धन प्राप्त करने की हो तो बुरी। 


चौथा और आखिरी उदवंड घोड़ा है घमंड। मैं यह काम कर सकता हूं इसे गर्व कहेंगे और सिर्फ मैं ही इस काम को कर सकता हूं यह घमंड होता है। बस यही सारे फर्क बुद्धि रूपी ट्रेनर से इन उदवड घोड़ों को समझाना  होगा फिर आपके यह चारों बदमाश घोड़े भी देखिए कैसे कंट्रोल में आते हैं।


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