छोटे बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ

दोस्तों, कहानियां बताइए या कहानियां सुनाइए एैसे शब्द हम सबने हमारे नाना नानी से या दादा दादी से, हमारे मम्मी पापा ने उनके नाना-नानी से या दादा दादी से जरूर कहे होंगे. कहानियां सुनना हमेशा से बहुत मनोरंजक रहा है. बच्चों की नई नई कहानियां सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि बड़ों को भी पसंद आती है. और हमारे बुजुर्गों के पास तो बच्चों की कहानियों का पिटारा हुआ करता था. वह हमें कई अच्छी-अच्छी कहानी और कई बार पारियों की कहानी और कई बार तो भूतों की कहानी भी सुनाया करते थे. ऐसा इसलिए भी करते थे क्योंकि वह हमें एक कहानियों के जरिए कुछ सीख कुछ बोल पाठ देना चाहते थे.मगर आज का जमाना बहुत एडवांस हो गया है, आपको कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बच्चों की कहानियां कार्टून के रूप में या एनिमेशन के रूप में भी मिल जाती हैं.


बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ | बच्चों की नई नई कहानियां


आज इस पोस्ट में मैं आप सबके लिए ऐसी ही बहुत बेहतरीन कुछ कहानियां लेकर आया है उम्मीद है आप सब को पढ़कर कुछ सीख मिलेगी और मजा भी आएगा.ट

कहानी : मेहनत का फल

19 वी सदी की बात है एक बहुत बड़ा व्यापारी था. उस व्यापारी के घर बहुत सालों बाद एक बेटे ने जन्म लिया. शायद यही वजह थी कि उस बच्चे के माता-पिता उसे हद से ज्यादा लाड लगाने लगे, इसका नतीजा यह हुआ कि जैसे-जैसे वह लड़का बड़ा होता गया अपनी मनमानी करने लगा. अपने बाप के पैसे बेवजह ऐसे ही उड़ा देता. एक जरूरी चीजें खरीद लेता जो की आवश्यकता ना हो वैसे चीजों के लिए भी ज्यादा पैसे देता. अब लड़का जवान हो गया था मगर उसका यह रवैया थोड़ा भी बदला नहीं था.

व्यापारी को अपने बेटे के ऐसे व्यवहार से अब बहुत दुख होता था. व्यापारी चाहता था की का बेटा है जीवन में मेहनत और पैसों का मूल्य समझे ताकि उसके मरने के बाद उसके बेटे को जिंदगी जीने में ज्यादा तकलीफों का सामना ना करना पड़े. उस व्यापारी ने एक दिन अपने बेटे को बुलाकर उससे साफ-साफ कह दिया कि मेरा जो कुछ भी है वह सब कुछ तेरा ही है मगर यह सब पाने के लिए तुझे साबित करना पड़ेगा कि तू खुद अपने दम पर भी कुछ कमा सकता है. अगर तू ऐसा करने में असमर्थ रहा तो तुझे मैं एक पाई भी नहीं दूंगा.

अपने पिता का यह बदला हुआ रूप देखकर उस लड़के को बहुत ज्यादा हैरानी हुईं और दुख भी. उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह अब अपने पापा को जरूर यह साबित करके दिखाएगा कि वह भी मेहनत करके पैसे कमा सकता है. यह सोचकर वह लड़का नगर में कुछ काम ढूंढने निकल गया और काफी समय तक इधर-उधर काम की तलाश करते करते उसे एक सेठ के यहां ठेला धकेलने का काम मिल गया. उस लड़के को अनाज की बोरियां ठेले पर लादकर एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाना होता था और पूरे दिन भर काम करने के बाद उसे उस समय के हिसाब से ₹1 मेहनताना मिलता था. हर दिन काम खत्म करके जब वह लड़का अपने घर जाकर खुद कमाए हुए पैसे अपने पिता के हाथों में रख देता तो उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य होता तो उसके पिता उस रुपयों को अपने घर के आंगन में बने हुए में डाल देते!

अगले कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा अब धीरे-धीरे उस लड़के का सब्र टूटने लगा और एक दिन उसने अपने पापा से कह दिया कि पापा आप ऐसा क्यों करते हैं मैं इतनी मुश्किल से पूरा दिन कड़ी मेहनत करके पैसे कमाता हूं और आप ऐसे ही कुए में डाल देते हैं, यह सब देख कर मुझे बहुत तकलीफ होती है.

Moral of the story

तब व्यापारी बोला बेटा अब जाकर तुम्हें मेहनत और पैसों की सही कीमत पता चली है.मैं जानता हूं जब आपकी मेहनत की कमाई कोई ऐसे ही फालतू में जाया कर देता है तो कितनी तकलीफ होती है यही बात अगर मैं तुम्हें बोलकर सिखाता तो तुम उस पर ध्यान नहीं देते इसीलिए मुझे यह सब करना पड़ा. व्यापारी का वह लड़का अब अपने बाप द्वारा दिए सबक को अच्छी तरह समझ गया था और बड़ा ही जिम्मेदार बन गया बिना किसी कारण पैसे खर्च नहीं करता था.




कहानी: किसी की मदद लेना कमजोरी नहीं समझदारी


यह कहानी है एक पिता और उसकी छोटी बच्ची की. 1 दिन पिता और वह छोटी बच्ची एक बाग में ठहलने के लिए गए. बच्चे बहुत खुश थी बाग में टहलते टहलते हो इधर उधर देख रही थी, लोगों को देख रही थी. पेड़, पौधे, फूल देख रही थी और बहुत खुश हो रही थी.

कुछ समय बाद जब वह छोटी बच्ची और उसके पिता बाग में बने कच्चे रास्ते पर चलने लगे तो थोड़ी दूरी पर उन्हें पेड़ की एक टहनी टूट के रास्ते पर गिरी हुई नजर आई. उस टहनी को देखकर छोटी बच्ची अपने पापा से बोली, "पापा क्या मैं इस तहनी को रास्ते से अलग कर दूं?" पापा ने कहा, " हां जरूर मगर तुम्हें ताकत के साथ-साथ अपना दिमाग भी लगाना पड़ेगा तभी तुम ऐसा कर पाओगी."

 पापा की बात सुनकर बच्ची रास्ते में पड़ी टहनी को हटाने के लिए पूरी कोशिश करने लगी, अपना पूरा जोर लगा दिया. मगर भारी भरकम कहने उससे बिल्कुल भी नहीं हटी.

कई बार नाकाम कोशिश करने के बाद जब उससे यह काम नहीं हो पाया तो वह अपने पापा के पास उदास होकर आ गई और बोली कि पापा," यह काम बहुत मुश्किल है शायद मुझसे कभी भी नहीं हो पाएगा." तब उसके पापा ने कहा बेबी ज़रा याद करो मैंने तुमसे थोड़ी देर पहले क्या कहा था? मैंने तुम्हें कहा था कि ना सिर्फ ताकत बल्कि तुम्हें अपनी बुद्धि भी इस्तेमाल करनी पड़ेगी. तुम अगर थोड़ी बुद्धि का इस्तेमाल करके मुझे मदद के लिए बुला लेती कि यह काम चुटकियों में हो जाता. बेटी दुनिया में ऐसे हजारों काम है जो इंसान अकेला करने में असमर्थ होता है मगर उस काम को एकजुट होकर या किसी और की मदद लेकर किया जाए तो वह बड़ी आसानी से हो जाता है

Moral of the story

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि अगर हमसे कोई काम नहीं हो पाता है तो उसके लिए दूसरों की मदद लेने में कोई बुराई नहीं है. हमारी संस्कृति भी हमें वही सिखाती है कि जो काम हम अच्छे से कर सकते हैं वह करने के लिए हम दूसरों की मदद करें और जो हम नहीं कर पाते उसको करने के लिए हम दूसरों से मदद ले.




कहानी: आलसी कौवा

एक बार एक जंगल में तीन दोस्त जिनमें एक कौवा एक गिलहरी और एक भालू रहा करते थे. इन तीनों में दोस्ती बहुत पक्की थी मगर मुश्किल यह थी कि जितने गिलहरी और भालू मेहनती और हर काम समय पर करने वाले थे कौवा उतना ही उनसे वितरित और बहुत ज्यादा आलसी था.

क्योंकि कौवा बड़ा ही आलसी था वो हमेशा बिना काम किए खाने पीने की चीजें उसे कैसे मिलेगी इस बारे में योजनाएं बनाता रहता था. एक दिन ऐसे ही योजना उसके दिमाग में आई तो उसने अपने दोनों मित्रों गिलहरी और भालू को जहां में रहता था वहां बुलाया. कौवा बोला कि अब फसल बोने के लिए बहुत बढ़िया समय चल रहा है हम तीनों मिलकर अनाज की खेती करते हैं. तीन मिलकर काम करेंगे तो काम फटाफट और आसानी से हो जाएगा,जब फसल कटेगी तो हम उसे 3 हिस्सों में बांट लेंगे.

भालू और गिलहरी तो थी ही मेहनती तो उन्हें यह आईडिया बहुत अच्छा लगा. उन्होंने तुरंत किस काम के लिए आर्मी भर्ती और जरूरी सामान जुटा लिया. जब खेत जोतने की बारी आई तो गिलहरी और भालू तैयार हो गए और कौवे को बुलाने लगे. कौवा बोला तुम लोग आगे जाओ मैं बहुत भूखा हूं मैं थोड़ी रोटी खाकर बस आता ही हूं. भालू और गिलहरी अपना काम करने के लिए आगे बढ़ गए वह पूरा दिन खेत जोते रहे और समय बच गया तो उन्होंने अनाज भी बो दिया, मगर कौवा कहीं दूर दूर तक दिखाई नहीं दिया.

दो-तीन महीने बीत गए,फसल बहुत बढ़िया हुई और कटाई करने का समय भी आ गया. भालू और गिलहरी कौव्वे के पास गए और बोले चलो अब तो फसल रेडी है बस उसे काटना है और अपना अपना हिस्सा ले लेना है. कौवा बोला ठीक है ठीक है मैं पानी पीकर तुरंत आता हूं ,तुम लोग आगे जाओ. भालू और गिलहरी अपने काम में फीर आगे बढ़ गए उन्होंने कौव्वे का इंतजार नहीं किया और अपने हिस्से की कटाई के साथ ही साथ कौवे के हिस्से की भी कटाई कर दी. वे दोनों अपने अपने हिस्से का अनाज उठाकर अपने घर ले गए और जाते-जाते कव्वे को बोल गए कि तुम्हारे हिस्से का अनाज काटकर खेत में ही पड़ा है उसे जल्दी से जाकर ले आना.
कब हुआ अपनी आदत से मजबूर था उसने फिर आलस दिखाते हुए सोचा की फसल तो कट गई हैं, मुझे बस उठा कर ही तो लाना है आज लाओ या कल क्या फर्क पड़ता है.
मगर उसी रात जंगल में जोरदार बारिश हुई और कव्वे के हिस्से का अनाज पानी में बह गया. आलसी कौवा पेड़ पर बैठा बैठा अपने हाथ मलने के अलावा कुछ ना कर पाया.

Moral of the story

दोस्तों इसीलिए कहते हैं कि काम समय पर करना जरूरी है. जो कर्म करता है वही आगे बढ़ पाता है, आलसी लोग जिंदगी में कुछ भी नहीं कर पाते पर अपनी हालत बद से बदतर कर लेते हैं.



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