कहानी - कुत्ता और उसका प्रतिबिंब | moral short story
एक शहर में एक म्यूजियम था। उस म्यूजियम में एक ऐसा कमरा था जहां पर चारों और आईने थे, यहां तक कि उस कमरे की दीवार पर, छत पर और फ्लोर पर भी शीशे लगे हुए थे। कोई भी वस्तु या व्यक्ति उस कमरे में दाखिल होता तो उसके कई सारे प्रतिबिंब उन शिशो में दिखाई देता।
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एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि उस म्यूजियम की देखभाल करने वाला आदमी उस म्यूजियम का पीछे का दरवाजा बंद करना भूल गया। वह दरवाजा सीधे उस शीशे वाले रूम में जाकर खुलता। अब हुआ कुछ ऐसा के उस मुसियम के आसपास उस दिन एक कुत्ता घूम रहा था। गलती से वो म्यूजियम के अंदर प्रवेश कर गया। जैसे ही वह इस शीशे वाले कमरे में प्रवेश किया उसे कई सैकड़ों अपने जैसे कुत्ते अपने सामने नजर आए जो वास्तव में उसके प्रतिबिंब थे, मगर वह इस बात को समझ नहीं पाया और अपने सामने इतने सारे अन्य कुत्तों को देखकर उन पर भोकने लगा। उसने देखा कि सारे कुत्ते भी उसका विरोध करते हुए उस पर भौंक रहे हैं!
कुत्ता यह देख कर डर गया। मगर जैसा कुत्तों का नेचर होता है वह अपनी धाक दूसरों पर जमाने के लिए और जोर से भोकने लगा परिणाम स्वरूप उसी की तेज हुई आवाज शीशों से टकराकर रिफ्लेक्ट(वापस) होकर कई गुना बढ़कर उसे ही सुनाई देने लगी।
कुत्ता पूरी रात अपने ही प्रतिबिंब से लड़ता रहा ! जब सुबह म्यूजियम की देखभाल करने वाला आदमी आया तो उसने शीशों वाले कमरे में उस कुत्ते को मरा हुआ पाया।
कहानी से हमने क्या सीखा?
यह दुनिया भी शीशों वाले कमरे जैसी है। हम जैसा बर्ताव करेंगे हमें यह दुनिया वैसा ही रिफ्लेक्शन देगी। हम स्माइल करेंगे तो हमें स्माइल मिलेगी, हम हिंसा करेंगे तो हमें हिंसा मिलेगी, हम पॉजिटिव रहेंगे तो हमे पॉजिटिविटी मीलेगी। इसीलिए ऐसा ही काम करो जैसा आप चाहते हो आप को दुनिया से रिफ्लेक्शन मिले।
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