बहू और बेटी समान : पारिवारिक कहानी | SAS Bahu ki Kahani 


मां, मैं बहुत थक गई हूं घर संभालते संभालते। यहां मेरी थकान किसी को नजर नहीं आती! कुछ दिन आराम करना चाहती हूं। सोच रही हूं कुछ दिनों के लिए अपने मायके आ जाऊं, आते हुए अपने बच्चों को भी साथ ले आऊंगी,वे वहीं से स्कूल चले जाएंगे। आखिर एक ही शहर में ससुराल और माइका होने का कुछ तो फायदा मिले।नम्रता ने फोन पर अपनी मां से कहां।


बहू और बेटी समान : पारिवारिक कहानी | SAS Bahu ki Kahani


पार्वती जीने दूसरी तरफ से कहां - हां बेटा जब तेरी इच्छा हो आ जाना आखिर ये तेरा भी तो घर है। 


ठीक है मां तो मैं कल ही आ जाऊंगी नम्रता खुश हो बोली।


हां बेटा कल आ जाओ, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी अभी मैं फोन रखती हूं मुझे मंदिर भी जाना है।


 कमला जी ने फोन रख दिया और सीधे किचन में गई। किचन में खाना बना रही बहू से बोली - अरे अनुपमा सुनो कल तुम्हारी ननंद आ रही है, आज बाजार जाकर फल, सब्जी और मिठाइयां लेकर आना।

बेचारी मेरी बेटी ससुराल में नौकरों की तरह काम करती है और उस पर कोई ध्यान ही नहीं देता। यहां आएगी कुछ दिन रहेगी तो उसका मन और तबीयत अच्छे रहेंगे।


सास के मुंह से ऐसी बातें सुनकर अनुपमा का चेहरा उतर गया ! वह मन ही मन सोचने लगी ,काश आपको मेरी थकावट भी नजर आती। मैं भी दिन रात झाड़ू पोछा, बर्तन खाना बनाना, मार्केट जाना और हर वह काम करती हूं जिससे हमारे परिवार वालों को कोई दिक्कत ना हो। काश आप मुझ पर भी ध्यान दे पाती।


आपकी बेटी तो जब मन में आता है तब यहां आ जाती है लेकिन मैं साल में एक बार ही अपनी मां के पास जाती हूं  तब भी आपको प्रॉब्लम होती है। मैं भी इंसान हूं, मेरा भी मन है, मुझे भी लगता है अपने मां के पास जाकर थोड़ा आराम करू, सुख-दुख की दो-चार बातें करू, अपना मन हल्का करु। भगवान अब तुम ही कुछ करो ताकि मेरी सांस की आंखें खुले और उसे मेरी थकावट भी नजर आए।


शाम तक भगवान ने जैसे अनुपमा की सुन ली और उसकी ननंद का फोन आया। ननंद ने अपनी मां से कहा की उसकी सास ने उसे  मायके आने के लिए मना कर दिया है इसलिए इस बार वो नही आ सकती।


पार्वती जी बोली ऐसे कैसे मना कर दिया! पहले तो कभी वह तुम्हें आने के लिए नहीं रोकती थी। इस बार भला क्या हो गया? लाओ मेरी बात कराओ उसने मैं समझती हूं।


नम्रता ने फोन अपनी सास के पास दिया। पार्वती जी ने कहा नमस्कार समधन जी! आपसे कुछ कहना था। समधन जी ने कहा कहिए। दरअसल नम्रता कल त्योहार है इसलिए अपने मायके आना चाहती है अगर आप उसे भेज दे तो अच्छा रहेगा।


नम्रता की सास ने कहा देखिए समधन जी आपकी बेटी माईके जा कर रहे इस बात के लिए हमने उसे कभी नहीं रोका और इस बात से हमें कोई प्रॉब्लम है भी नहीं।


कुछ दिनों पहले मैं अपने रिश्तेदार के शादी में गई थी वहां आपकी बहू अनुपमा की माता जी से मिलने का मौका मिला। उनसे गपशप करने के दौरान उनकी बातों से पता चला कि अनुपमा को साल में एक ही बार अपने मायके जाने को मिलता है और वह भी बहुत कम समय के लिए।


मुझे लगता है आपको पहले अनुपमा को उसके मायके भेज देना चाहिए और वह जब मायके होकर आ जाएगी तो मैं नम्रता को आपके पास भेज दूंगी।


एक बहुत जरूरी बात जो मुझे लगता है आपको समझ लेनी चाहिए की आपको अपनी बहू को भी बेटी की तरह या बेटी से भी ज्यादा प्यार देना चाहिए। उसे भी मायके जाने की इच्छा होती होगी। हो सकता है नम्रता के वहां आने से उसकी आवभगत करने के लिए आप उसे उसके मायके नहीं भेजती होंगी, या फिर वह आपसे कुछ कहने से अभी डरती हो। अगर आप उसको घर में ही कैद रखेगी तो 1 दिन ऐसा आएगा जब वह आपके खिलाफ बोलने लगेगी! फिर वह आपकी सुनेगी भी नहीं और जब चाहे तब अपने मायके जाएगी।

ऐसी परिस्थिति आए इस से अच्छा है कि आप ही कुछ बदलाव अमल में ले आए जिससे आपका रिश्ता और रिश्ते की मिठास खराब ना हो।


पार्वती को अपने समधन के हर एक शब्द में सच्चाई नजर आई। उन्हें महसूस हुआ कि उन्होंने अपनी बेटी के प्यार में अंधे होकर कभी भी अपनी बहू के मन का विचार नहीं किया। उन्होंने हमेशा ही अपनी बेटी को अपने बहु से ऊपर रक्खा।

दूसरी तरफ नम्रता भी अपनी भाभी के बारे में हो रही इस बातचीत को सुन रही थी उसने भी रियलाइज किया कि वह कभी भी अपनी भाभी के साथ ठीक से बात नहीं करती और जब जब वह अपने मायके जाती है तो भाभी थोड़ी उदास रहती है।


पार्वती जी ने अपनी बहू को बुलाया और उसे कहा  कि अनुपमां कुछ दिनों के लिए नम्रता नहीं आने वाली है इसलिए पहले तुम अपने मायके हो कर आओ।


यह सुनते ही अनुपमा का चेहरा खिल गया क्योंकि यह पहली बार था जब उसकी सास ने सामने से उसे अपने मायके जाने के लिए कहा था।


अगले दिन अनुपमा अपने मायके गई और इस बार एक-दो दिन नहीं पूरे हफ्ते भर रह कर आई अपने मां बाप से अपने रिश्तेदारों से मिलकर आई और जब वह लौटकर आई तो उसका चेहरा खिला हुआ था उसकी आंखें चमक रही थी।


अनुपमा के आने के बाद नम्रता भी अपने मायके आई और इस बार वो खुद सामने से अपनी भाभी से खुशी खुशी मिली और अच्छे से बात की। नम्रता ने अपनी मां से बात करके उन्हें भी अच्छे से समझने में मदद की के वह कहीं ना कहीं अनुपमा के साथ गलत व्यवहार कर रहे थे।


दूसरी तरफ अनुपमा अपने ससुराल वालों के बदले रवैया से बहुत खुश थी अब वह खुशी-खुशी सबका ध्यान रखती और हर काम प्यार से करती। वह ध्यान रखती के कोई भी ऐसी बात या काम ना करें जिससे घर में तनाव का माहौल पैदा।


पार्वती जी अपनी बहू को खुद ही समय-समय पर मायके भेज दिया करती।एक छोटे से बदलाव ने सास बहू और भाभी ननंद के बीच की कड़वाहट को दूर कर दिया और रिश्तो को और भी ज्यादा मीठा और मजबूत कर दिया।


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2 टिप्पणियाँ

  1. मुझे आपकी कहानी अच्छी लगती है। क्या मैं इनको यूट्यूब पर वीडियो के लिए उपयोग मे लें सकती हूं ?

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  2. सास बहू की कहानी

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